मेरे सामने से
बादलों-जैसा वह इन्सान चला जा रहा है
उसकी देह को थपकने से
लगता है पानी झरने लगेगा
मेरे सामने से
बादलों-जैसा वह इन्सान जा रहा है
उसके पास जाकर बैठने पर
लगता है छाया उतर आएगी
वह देगा, या कि लेगा ? वह आश्रय है, या कि आश्रय चाहता है ?
मेरे सामने से
बादलों-जैसा वह इन्सान चला जा रहा है
उसके सामने जाकर खड़े होने से
हो सकता है मैं भी कभी बादल बन जाऊँ!
( शंख घोष, अनु.: उत्त्पल बैनर्जी )
मूल कविता : बंगाली