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सुविख्यात कवियत्री अमृता प्रीतम के पीछे कौन शख़्स ताउमर खड़ा रहा जिस को मुखातिब होकर वह कहा करती थी, “ ईमा, ईमा,तूँ दूर ना जाया कर , मेरे आले दुआले ई रिया कर, तेरा दूर जाना मैनु चंगा नई लगदा “ ( ईमा ईमा ( प्यार से अमृता, इमरोज़ को ईमा बुलाया करती थीं ) तुम दूर मत जाया करो, मेरे आस पास ही रहा करो, तुम्हारा दूर जाना मुझे अच्छा नहीं लगता )
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याद आता है वह वाकया जब निर्देशक गुरुदत्त के बुलावे पर इमरोज़ मुंबई चले गए थे तो अमृता जी ने उन्हें ख़त में लिखा था, “जब से तुम गये हो मुझे बुख़ार चढ़ा हुआ है और जो फल तुम ख़रीद कर रख गये थे वह भी ख़त्म हो गए है । तुम तो जानते ही हो मैं कुछ भी ख़रीद करने बाहर नहीं जाती“
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ख़त पढ़ते ही इमरोज़ जी नौकरी छोड़ कर अपनी अमृता के पास तुरंत दिल्ली लौट आये थे । वह जानते थे अमृता उनकी ग़ैरहाज़िरी में कैसे मुश्किल में रह रही है ।
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बहुत कम लोग जानते थे कि अमृता के पीछे कौन शख़्स खड़ा है जिसके बिना अमृता निःसहाय सी महसूस करती रहती थीं । पूछती थी वह किसे अपनी कविता, कहानी या नावेल सुनाये ? इमरोज़ के बिना वह बहुत अकेली महसूस करती थीं ।
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मैं हैरान हूँ अमृता जी ने स्वर्ग में , इमरोज़ के बिना १८ साल कैसे बिताये होंगे जिस इमरोज़ ने हर मुसीबत में उनका हाथ थामे रखा और हर आँधी , तूफ़ान , बाढ़ से बचाये रखा !
मुझे यक़ीन है अब जब वह इमरोज़ जी को मिली होंगी तो ज़रूर कहा होगा “क्यों ईमा, ऐनी देर क्यों लायी ?“ ( क्यों इमरोज़, इतनी देर क्यों लगायी )
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( उमा त्रिलोक )