वे पुरानी औरतें-सुनीता करोथवाल

.

जाने कहाँ मर-खप गई वे पुरानी औरतें

जो छुपाए रखती थी नवजात को सवा महीने तक

घर की चार दीवारी में।

नहीं पड़ने देती थी परछाई किसी की

रखती थी नून राई बांध कर जच्चा के सिरहाने

बेल से बींधती थी चारपाई

रखती थी सिरहाने पानी का लोटा,

सेर अनाज

दरवाजे पर सुलगाती थी हारी दिन-रात।

.

कोई मिलने भी आता तो झड़कवाती थी आग पर कपड़े

और बैठाती थी थोड़ा दूर जच्चा-बच्चा से

फूकती थी राई, आजवाइन, गुगल सांझ होते ही

नहीं निकलती देती थी घर से गैर बखत किसी को।

.

घिसती थी जायफल हरड़ बच्चे के पेट की तासीर माप कर

पिलाती थी घुट्टी

और जच्चा को देती थी घी आजवाइन में गूंथ कर रोटियाँ।

.

छ दिन तक रखती थी दादा की धोती में लपेटकर बच्चे को

फिर छठी मनाती थी

बनाती थी काजल कचळौटी में

बांधती थी गले में राईलाल धागे से

पहनाती थी कौड़ी पैर में

पगथलियों पर काला टीका लगा

लटकाती थी गले में चाँद सूरज

बाहर की हर अला-बला से बचाती थी

कहती थी कच्ची लहू की बूंद है अभी ये

ओट में लुगड़ी की दूध पिलाती थी।

.

घर से बाहर निकल कर देखो पुरानी औरतो

प्रदर्शनी लगी है दूध मुंहे बच्चों की सोशल मीडिया पर।

.

कोई नजर का टीका

कोई नज़रिया बचा हो तो बाँध दो इन्हें

वरना झूल रहे हैं ये बाज़ार की गोद मे

लोगों के सैकड़ों कमेंट्स और लाइक्स के चक्कर में ।

.

( सुनीता करोथवाल )

 

 

Share this

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.