हर तरफ़ तेज़ आँधियाँ रखना-ध्रुव गुप्त

हर तरफ़ तेज़ आँधियाँ रखना
बीच में मेरा आशियाँ रखना

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धूप छत पर हो, हवा कमरे में
लॉन में शोख़ तितलियाँ रखना

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चाँद बरसे तसल्लियों की तरह
घर में दो-चार खिड़कियाँ रखना

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अपनी दुनिया है दिल-फ़रेब बहुत
एक दिल को कहाँ कहाँ रखना

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तूम रहोगे, जहाँ ज़मीं है तेरी
मैं जहाँ हूँ, मुझे वहाँ रखना

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लफ़्ज़ मिल जाएँ तो बयाँ होगा
होंट काँपे तो उँगलियाँ रखना

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बाँह फैले तो तुम को छू आए
फ़ासला इतना दरमियाँ रखना

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मेरे लफ़्ज़ों में दर्द दे या रब
मेरे मुँह में मेरी जुबाँ रखना

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( ध्रुव गुप्त )

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