
रात के साढ़े तीन बजे हैं
जाने कैसी सोच में गुम हूँ
कितनी रीलें देख चुकी हूँ
मन फिर भी तो बुझा हुआ है
जीत गई या हार रही हूँ
अब तक कोई खबर नहीं है
अम्मा-बाबा जगे हुए हैं, हैराँ से हैं
भाई मुझसे लिपट गया था
रो उट्ठा था
उसके आँसू याद आ रहे
उसकी बेचैनी भी मेरे पोर-पोर में जाग उठी है
सब अन्दर से टूट गया है
.
तुम पूछोगे किसने तोड़ा
एक नाम ले पाऊँगी क्या ?
मेरी आँखें आसमान के उस तारे को देख रही हैं
तुम भी देखो
देखो मेरे नानाजी हैं तारा बनकर
बोल रहे हैं मुझसे लोगों की मत सुनना
उम्र, पढ़ाई, नाम, पदक – सब बेमानी है
लोग कहेंगे चुप रहना, सब सह लेना
लोगों की परिभाषाएँ सब बेमानी है
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दरवाज़े पर खटके से दिल काँप गया है
छुपकर देखा – कोई नहीं है-बेचैनी है
रात अँधेरी, कोई नहीं है, बेचैनी है
नींद कहाँ है?
शायद बिस्तर के नीचे है, झुककर देखें?
डर लगता है – किससे लेकिन?
एक नाम ले पाऊँगी क्या? सख़्त मनाही है
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डरना हो तो डर सकती हो लेकिन सख़्त मनाही है
न! तुम कोई नाम न लेना!
रोते-रोते मर जाना पर – नाम न लेना
बड़े लोग हैं, बड़े नाम हैं
कल की लड़की – कौन हो तुम?
तुम्हें कौन सुनेगा?
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रात समेटो, नींद उठाओ
ठीक तो हो तुम; ठीक नहीं क्या?
क्या पागलपन रोना-धोना
मुँह पर कस के पट्टी बाँधो
चुप – सो जाओ!
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( शिवांगी गोयल )