अहसास के सैलाब में
डूबत-उतराते
बहुत बार भींच लेता हूं पलकें
कण्ठ हो जाता है अवरुध्ध
फूटने लगती हैं अनायास
दिल से, आँखों से
कुछ तरल संवेदनाऍ
शब्दों की सीमाओं से परे.
अपने आप से
जो कहा है तुमने
अपने आप
जो सहा है तुमने
उस दर्द को
छू भी नहीं सकता मैं
देखता हूँ, बस दूर से
लालच से
एक टूकडा कहीं से
हाथ लग जाए
मेरे भी.
( हेमेन्द्र चण्डालिया )
superb
superb
अहसास के सैलाब
अहसास के सैलाब
a beautiful poem.
a beautiful poem.