खो गए – राजेश रेड्डी
डाल से बिछुडे परिन्दे आसमाँ में खो गए
इक हकीकत थे जो कल तक, दास्ताँ में खो गए
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जूस्तजू में जिसकी हम आए थे वो कुछ और था
थे जहाँ कुछ और है हम जिस जहाँ में खो गए
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हसरतें जितनी भी थीं सब आह बन करा उड गई
ख्वाब जितने भी थे सब अश्के-रवाँ में खो गए
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लेके अपनी अपनी किस्मत आए थे गुलशन में गुल
कुछ बहारों में खिले और कुछ खिजाँ में खो गए
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जिन्दगी, हमने सुना था चार दिन का खेल है
चार दिन अपने तो लेकिन ईम्तिहाँ में खो गए
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( राजेश रेड्डी )
bahu saras gazal.
bahu saras gazal.
जैसे हम आप में और आप हम में खो गए…
जैसे हम आप में और आप हम में खो गए…