पिया, खोलो किवाड – हरिवंशराय बच्चन Feb4 . पिया, खोलो किवाड, पिया, खोलो किवाड, कोयल की गूंजी पुकारें. . बगिया में मरमर, दुनिया में जगहर, उतरी किरन की कतारें. पिया, खोलो किवाड, पिया, खोलो किवाड, कोयल की गूंजी पुकारें. . कलियों में गुन-गुन, गलियों में रुन-झुन, अम्बर से गाती बहारें. पिया, खोलो किवाड, पिया, खोलो किवाड, कोयल की गूंजी पुकारें. . पतझर को भूली, हर डाली फूली, बीती को हम भी बिसारें. पिया, खोलो किवाड, पिया, खोलो किवाड, कोयल की गूंजी पुकारें. . गूंगी थीं घडियां, गीतों की कडियां, वीणा को फिर झनकारें. पिया, खोलो किवाड, पिया, खोलो किवाड, कोयल की गूंजी पुकारें. . माना कि दुख है, बिधना विमुख है, आओ उसे ललकारें. पिया, खोलो किवाड, पिया, खोलो किवाड, कोयल की गूंजी पुकारें. . ( हरिवंशराय बच्चन )
હરિવંશરાય રાયની આ સુંદર રચનામાં ખૂબજ સુંદર માર્મિક વાત કહી જાય છે.. પિયાને ક્યા કબાટના દરવાજા ખોલવાની વાત કહે છે ..! જે સમજવા જેવું છે…! Reply
जब बंध ही नहीं किए दरवाज़े तो किवाड़ क्या खोले?
હરિવંશરાય રાયની આ સુંદર રચનામાં ખૂબજ સુંદર માર્મિક વાત કહી જાય છે.. પિયાને ક્યા કબાટના દરવાજા ખોલવાની વાત કહે છે ..! જે સમજવા જેવું છે…!