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इस जहाँ में यूँ तो सब आसान है
मेरी मुश्किल बस मेरा ईमान है
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जाने कब इस जिस्म से छूटूँगा मैं
जाने किस तोते में मेरी जान है
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कर रहा है इक सदी का इंतज़ाम
चार दिन का जो यहाँ मेहमान है
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क्या अजब है मौत है राहत का नाम
और ग़मों का ज़िन्दगी उनवान है
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ग़मज़दा तो सब हैं गौतम की तरह
सबकी क़िस्मत में कहाँ निर्वान है
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( राजेश रेड्डी )