अपने अंतर में ढालो ! – राहुल देव Feb6 मेरे अंतर को अपने अंतर में ढालो हे इतिवृत्तहीन अकल्मष ! मेरे अंतस के दोषों में श्रम प्रसूति स्पर्धा दो बनूँ मैं पूर्ण इकाई जीवन की गूंजे तेरा निनाद उर में हर क्षण विश्वनुराक्त ! तम दूर करो इस मन का अंतर्पथ कंटक शून्य करो हरो विषाद दो आह्लाद मैं बलाक्रांत, भ्रांत, जडमति विमुक्ति, नव्यता, ओज मिले परिणीत करो मेरा तन-मन मैं नित-नत पद प्रणत नि:स्व तुम्हारी शरणागत ! . ( राहुल देव )