अपने अंतर में ढालो ! – राहुल देव

मेरे अंतर को

अपने अंतर में ढालो

हे इतिवृत्तहीन

अकल्मष !

मेरे अंतस के दोषों में

श्रम प्रसूति स्पर्धा दो

बनूँ मैं पूर्ण इकाई जीवन की

गूंजे तेरा निनाद उर में हर क्षण

विश्वनुराक्त !

तम दूर करो इस मन का

अंतर्पथ कंटक शून्य करो

हरो विषाद दो आह्लाद

मैं बलाक्रांत, भ्रांत, जडमति

विमुक्ति, नव्यता, ओज मिले

परिणीत करो मेरा तन-मन

मैं नित-नत पद प्रणत

नि:स्व

तुम्हारी शरणागत !

 .

( राहुल देव )

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