याद के बादल – आशा पाण्डेय ओझा Feb7 फिर घिर आये याद के बादल फिर हरिया उठा पीड का पलाश फिर झरी मन की छत पर गीली-चाँदनी ख्वाबों की हल्की-हल्की बयार ने फिर खोली आज चाहत के दिनों से जोडी हुई सुरभिमय अहसास की वो रंग-बिरंगी शीशियाँ जो दबा रखी है मन की तहों के नीचे सबसे छुपकर मैंने और शायद तुमने भी . ( आशा पाण्डेय ओझा )