सोचता हूँ
क्या होगा
नीले आकाश के पार
.
कुछ होगा भी
या होगा शून्य
.
शून्य
मन जैसा खाली
जीवन सा खोखला
आँखों सा सूना
या
रात जैसा स्याह
.
कैसा होगा सब कुछ
होगी गौरैया वहाँ ?
देह पर रेगेंगी चींटियाँ ?
.
या होगा सब
इस पेड की तरह
निर्जन और उदास;
सागर में बूँद जितना
अकल्पनीय
जाए बिन
जाना कैसे जाए
और जाने को चाहिए
पंख
पर पंख मेरे पास तो नहीं
.
चलो पंछी से पूछ आएँ-
गरुड से
.
ढूँढते हैं गरुड को
.
( बृजेश नीरज )