उस पार – बृजेश नीरज Feb8 सोचता हूँ क्या होगा नीले आकाश के पार . कुछ होगा भी या होगा शून्य . शून्य मन जैसा खाली जीवन सा खोखला आँखों सा सूना या रात जैसा स्याह . कैसा होगा सब कुछ होगी गौरैया वहाँ ? देह पर रेगेंगी चींटियाँ ? . या होगा सब इस पेड की तरह निर्जन और उदास; सागर में बूँद जितना अकल्पनीय जाए बिन जाना कैसे जाए और जाने को चाहिए पंख पर पंख मेरे पास तो नहीं . चलो पंछी से पूछ आएँ- गरुड से . ढूँढते हैं गरुड को . ( बृजेश नीरज )