अमृता गई ही नहीं-उमा त्रिलोक

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प्रोमिला जी ने ठीक ही कहा कि माजा ( इमरोज़ अमृता जी को प्यार से माजा बुलाते थे ) गई ही नहीं वह इमरोज़ जी के साथ ही थी.
मुझे याद है अमृता जी के दाह संस्कार के वक्त, जब इमरोज़ जी एक कोने में अकेले खड़े थे तो मैंने उनके कंधे पा हाथ रख कर कहा था “इमरोज़ जी अब उदास नहीं होना, आपने तो दिलों जान से सेवा की थी फिर भी….”
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उन्होंने बात काट कर कहा था….
“उमा जी, उसने जाना कहाँ है यही रहना है मेरे आले दुआले ,,,, मैं तो खुश हूँ , जो मैं नहीं कर सका वह मौत ने कर दिया , उसे उसके दर्द से निजात दिला दी ।
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और वह तो हमेशा यही कहते “वह गई नहीं , उसने शरीर छोड़ा है साथ नहीं , जब तक मैं ज़िंदा हूँ वह मेरे साथ ज़िंदा है “
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इमरोज़ जी अमृता जी का कमरा आज भी रोज़ सजाते, ताज़े एडेनियम के फूलों से महकाते, उनके लिए खाना पकाते,पूछने पर कहते, “ मैंने पनीर की भुजिया बनायी है या मैंने वेज सूप बनाया है जो अमृता को बहुत पसंद है“ और फिर प्लेट में परोस कर उनके कमरे में ले जाते …
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मैं कभी कभी यह सोचती वह अभी भी कल्पना की दुनिया मैं रह रहें हैं लेकिन कुछ वाक़यात तो ऐसे थे कि मुझे भी चकित कर देते और यक़ीन हो जाता कि वे दोनों अभी भी साथ साथ हैं ।
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बहुत से ऐसे वाक़यात का ज़िक्र मैंने अपनी किताब “ She Lives On“ में किया है । उन सब बातों के बाद तो मुझे भी यक़ीन हो गया था कि वह दोनों साथ साथ हैं.
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यह किताब “She Lives On “ का गुजराती अनुवाद है.
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(उमा त्रिलोक )
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