मुझे याद है
मेरी बस्ती के सब पेड
पर्वत
हवाएँ
परिन्दे
मेरे साथ रोते थे
हँसते थे
.
मेरे ही दुख में
दरिया किनारों पे सर पटकते थे
.
मेरी ही खुशियों में
फूलों पे
शबनम के मोती चमकते थे
.
यहीं
सात तारों के झुरमुट में
लाशक्ल सी
जो खुनक रोशनी थी
.
वही जुगनुओं की
चरागों की
बिल्ली की आँखों की ताबन्दगी थी
.
नदी मेरे अन्दर से होके गुजरती थी
आकाश…!
आँखों का धोका नहीं था
.
ये बात उन दिनों की है
जब ईस जमीं पर
ईबादत घरों की जरुरत नहीं थी
मुझी में
खुदा था…!
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( निदा फाजली )
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[ लाशक्ल = बिना शक्ल, खुनक = ठण्डी ]
तू ना जाने आस पास है खुदा…जिनको किसीसे मोहब्बत है या जिनके दिलों में प्यार है खुदा आज भी वही बसते है…जैसे आप में है और जैसे हम में भी बसते ही है…
तू ना जाने आस पास है खुदा…जिनको किसीसे मोहब्बत है या जिनके दिलों में प्यार है खुदा आज भी वही बसते है…जैसे आप में है और जैसे हम में भी बसते ही है…