मिलते ही हमको समझाने लगते हैं
दीवानों को हम दीवाने लगते हैं
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किस पर तीर चलाऊँ किसको छोडूँ मैं
दुश्मन सब जाने-पहेचाने लगते हैं
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दिन भर जो ढोते हैं बोझ खामोशी का
नींदों में अकसर चिल्लाने लगते हैं
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झूठ को फैलने में लगते हैं बस कुछ पल
लेकिन सच को कई जमाने लगते हैं
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हम भी कितने नादाँ हैं, इक वादे पर
कैसे-कैसे ख्वाब सजाने लगते हैं
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तौबा तो करते हैं रोज गुनाहों से
रोज मगर उनको दोहराने लगते हैं
हाल अजब होता है दिल का गुरबत में
सीधे-सादे बोल भी ताने लगते हैं
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( राजेश रेड्डी )
કવિશ્રી રાજેશ રેડ્ડીને રાજકોટ એક કાર્યક્રમમાં રૂબરૂ મળવાનું થયેલું ત્યારે એમની કવિતાઓ એમના જ આગવા અંદાઝમાં સાંભળવાનો લ્હાવો મળેલો.
બહુજ સશક્ત અભિવ્યક્તિના ધની છે રેડ્ડીજી…
આજે અહીં એમની ગઝલિયતથી ભરપૂર રચના માણવા મળી
આભાર આપનો.
सीधे सादे बोल भी ताने लगते है…अति सुंदर.