उगते सूरज से लेकर
डूबती रात तक
बता कोई लम्हा
जो खाली रहा हो
मेरे दिल में कभी
तेरे खयाल से
यह कहाँ का न्याय
मुहब्ब्त का रिश्ता
शुरु तूने किया
निभा रही हूँ मैं
जितनी परेशानी नहीं
तेरे भूल जाने की
आदत से
उतनी परेशान हूँ
जालिम
अपनी याद रहने की
इस आदत से
.
( आशा पाण्डेय ओझा )
मैं तुझे टूटकर चाहूँ ये मेरी फितरत है,
तू भी हो मेरी तलबगार – ये ज़रूरी तो नहीं…!!!
मैं तुझे टूटकर चाहूँ ये मेरी फितरत है,
तू भी हो मेरी तलबगार – ये ज़रूरी तो नहीं…!!!