तलाश करता है-खलील धनतेजवी
न जाने किस का कबीला तलाश करता है,
फकीर शहेर का नकशा तलाश करता है !
मिटा के रात की तारीकियां ये सूरज भी,
जमीं पे अपना ही साया तलाश करता है !
बना के खन्दकें हर सिम्त अपने हाथों से,
अजीब शख्स है रस्ता तलाश करता है !
मैं जानता हुं, मेरी प्यास पर तरस खा कर,
वो मेरी आंख में दरिया तलाश करता है !
खलील आज वो आईने बेचने वाला,
कूएं में झांक कर चहेरा तलाश करता है !
( खलील धनतेजवी )
[ तारीकियां-અંધકાર, सिम्त-ખાઈઓ, खन्दकें-દિશા ]