समन्दर, ऐहले साहिल को मचल जाने दिया होता,
तेरा पानी जरा सा और उछल जाने दिया होता.
राजर जो तुमने कटवाया, हरा हो भी तो सकता था,
फकत पतझड का ये मोसम बदल जाने दिया होता.
जरा मौका तो देना था, मेरे रेहमो-करम वालो,
मुझे खुद ही संभलना था, संभल जाने दिया होता.
तेरे ऐहसान से तो आग के शोले ही बेहतर थे,
मेरा घर जल रहा था, काश जाने दिया होता.
तुम्हें तर्के-तअल्लुक की जरुरत ही न पेश आती,
फकत इजहार करना था, अमल जाने दिया होता.
यहां यूं बेसबब मेरी गिरफतारी नहीं होती,
मुझे करफ्यू से पहले ही निकल जाने दिया होता.
खलील अबतक किसी शोला बदन सांसों की गरमी से,
तेने अंदर के पथ्थर को पिघल जाने दिया होता.
( खलील धनतेजवी )
[ राजर-વૃક્ષ, तअल्लुक-સંબંધ વિચ્છેદ, इजहार-જાહેર ]