राम : कुछ शब्द-चित्र : भाग तीन-मनमीत सोनी

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1.
अजी! क्या आपको मुझ पर शक है?
“कैसी बात करती हो सीते? बिलकुल नहीं!”
तो फिर डरते क्यों हैं?
“डरता हूँ कि लोग फिर भी बहुत कुछ कहेंगे!”
लोगों को भूल जाइये!
“कैसे भूल जाऊँ! मेरी प्रजा है!”
सीताजी के तन-बदन में आग लग गई। कालांतर में कुछ भोले और मूर्खों ने इसे सचमुच की आग समझ लिया। आज जिसे अग्नि-परीक्षा कहते हैं, दरअसल वह अपने मूल में पति-पत्नी की मीठी तकरार थी!
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2.
रामायण में सब कुछ आदर्श है। इतना आदर्श है कि तुलसीदास जैसा भक्त इस पर रामचरित मानस लिख सकता है मगर मनमीत जैसा खल-कामी दस-बारह कविताओं में ही थक जाता है!
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3.
पका हुआ फल
खिला हुआ फूल
माँ का पहला दूध
बच्चे का टूटा दाँत
पुरुष की पहली कमाई
नई-नई बहू ने नेगचार आदि-आदि..
मेरे बिम्ब
कितने साफ़-सुथरे हो जाते हैं-
जब मैं राम का नाम लेता हूँ!
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4.
जो स्त्री
किसी के टोकने पर
आग में जल सकती है
और धरती में समा सकती है
वह किसी रावण के बाँधने से क्या बँधती?
लेकिन यह
एक स्त्री का निर्दोष हठ था
कि उसका पुरुष आएगा
पूरी बरात और ढ़ोल-धमाकों के साथ आएगा
और जब तक
वह नहीं आएगा
वह अपनी रस्सियाँ नहीं खोलेगी!
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( मनमीत सोनी )
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