राम : कुछ शब्द-चित्र : भाग पांच-मनमीत सोनी

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1.
क्योंकि अब
मैं अपने राम का कवि हूँ-
क्या इसीलिए
तुम्हारे काम का कवि नहीं हूँ?
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2.
मैं कवि हूँ
मैं भक्त नहीं हूँ..
जाओ!
और मुझे
इस अवसाद में घुलने दो
कि रामराज्य आ भी गया
तो जीवन-मृत्यु का क्या होगा?
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3.
सीताएँ
धरती में समाती रही हैं..
राम
नदियों में डूबते रहे हैं..
कोई तो बताए..
आसमान जैसे लोग
आख़िर
कहाँ चूकते रहे हैं?
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4.
तुलसीदास जी!
एक बात कहूँ?
बुरा तो नहीं मानेंगे?
मेरी रत्ना ने मुझे भी वही उलाहना दिया था, जो आप की रत्ना ने आप को दिया था।
लेकिन मैं हार कर रामचरितमानस नहीं लिखने बैठ गया।
बल्कि मैंने अपनी रत्ना को इस बार अलग तरीक़े से प्यार किया और उसने इस बार मुझे कोई उलाहना नहीं दिया।
उलटे वह तो मेरी और ज़्यादा दीवानी हो गई।
तुलसीदास जी!
एक बात और कहूँ?
बुरा तो नहीं मानेंगे?
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5.
रामजी ने ताड़का को तीर मारा
तीर ताड़का के बाएं सीने में घुप गया
ताड़का धरती पर गश खा कर गिर गई
लक्ष्मण जी ख़ुशी से फूले न समाए
लक्ष्मण जी ने राम जी से कहा :
मर गई दुष्ट!
राम जी ने लक्ष्मण जी से कहा :
अच्छी बात है! लेकिन इस देवी को भी कहाँ पता था कि वह राक्षसी थी!
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( मनमीत सोनी )
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