इक जोड़ा कश्मीर गया था-मन मीत

इक जोड़ा कश्मीर गया था

उसमें से बस पत्नी लौटी !

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घूम रहे थे घाटी घाटी

तैर रहे थे झील में पंछी

हाथ में पंछी आंख में पंछी

आकाशों के नील में पंछी

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नाव चली थी मद्धिम मद्धिम

और बुलबुले प्रिज्म हुए थे

उन दोनों में प्यार हुआ था

उन दोनों ने हाथ छुए थे

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साजन को पंछी चुग बैठे

बदली से बस सजनी लौटी !

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इक जोड़ा कश्मीर गया था

उसमें से बस पत्नी लौटी !

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कहवे से उठती भापों से

दो लोगों ने चित्र बनाया

अनजाने अपने लोगों को

दो लोगों ने मित्र बनाया

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कुल्फी खाई दूध जलेबी

पुचके खाए पानी वाले

उन दोनों का जुर्म यही था

उन दोनों ने सपने पाले

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दिन को लूट गई संध्याएं

लुटी पिटी – सी रजनी लौटी !

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इक जोड़ा कश्मीर गया था

उसमें से बस पत्नी लौटी !

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बर्फ़ घाटियां श्वेत वसन की

बुझती थी जब प्यास बदन की

लेकिन कैसा विकट समय है

चाट गईं बंदूक अगन की

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इक मज़हब का राक्षस सपना

लील गया मंदिर के दीये को

भूल गए जो भी साझा था

भूल गए सब लिए दिए को

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सांपों को था दूध पिलाया

हम तक अपनी करनी लौटी !

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इक जोड़ा कश्मीर गया था

उसमें से बस पत्नी लौटी !

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दो सांसों का मेला उजड़ा

यह वीरानी किसके सर है?

मेरे घर का कब्ज़ा छोड़ो

ये मेरा पुश्तैनी घर है!

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तुम कश्मीरी धरती छोड़ो

सारा हिंदुस्तान हमारा

अल्लामा इक़बाल को छोड़ो

चीन ओ’ पाकिस्तान हमारा

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गठजोड़े में आग लग गई

बिना अंगूठी मंगनी लौटी !

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इक जोड़ा कश्मीर गया था

उसमें से बस पत्नी लौटी !

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( मन मीत )

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