Category Archives: कविता-हिन्दी/उर्दू
लड़के हमेशा खड़े रहे-सुनीता करोथवाल
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लड़के हमेशा खड़े रहे
खड़ा रहना उनकी कोई मजबूरी नहीं रही
बस उन्हें कहा गया हर बार
चलो तुम तो लड़के हो खड़े हो आओ
तुम मलंगों का कुछ नहीं बिगड़ने वाला
छोटी-छोटी बातों पर वे खड़े रहे कक्षा के बाहर
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स्कूल विदाई पर जब ली गई ग्रुप फोटो
लड़कियाँ हमेशा आगे बैठी
और लड़के बगल में हाथ दिए पीछे खड़े रहे
वे तस्वीरों में आज तक खड़े हैं
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कॉलेज के बाहर खड़े होकर
करते रहे किसी लड़की का इंतजार
या किसी घर के बाहर घंटों खड़े रहे
एक झलक,एक हाँ के लिए
अपने आपको आधा छोड़
वे आज भी वहीं रह गए हैं।
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बहन-बेटी की शादी में खड़े रहे मंडप के बाहर
बारात का स्वागत करने के लिए
खड़े रहे रात भर हलवाई के पास
कभी भाजी में कोई कमी ना रहे
खड़े रहे खाने की स्टाल के साथ
कोई स्वाद कहीं खत्म न हो जाए
खड़े रहे विदाई तक दरवाजे के सहारे
और टैंट के अंतिम पाईप के उखड़ जाने तक
बेटियाँ-बहनें जब तक वापिस लौटेंगी
वे खड़े ही मिलेंगे।
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वे खड़े रहे पत्नी को सीट पर बैठाकर
बस या ट्रेन की खिड़की थाम कर
वे खड़े रहे बहन के साथ घर के काम में
कोई भारी सामान थामकर
वे खड़े रहे माँ के ऑपरेशन के समय
ओ. टी. के बाहर घंटों
वे खड़े रहे पिता की मौत पर अंतिम लकड़ी के जल जाने तक
वे खड़े रहे दिसंबर में भी
अस्थियाँ बहाते हुए गंगा के बर्फ से पानी में
लड़कों रीढ़ तो तुम्हारी पीठ में भी है
क्या यह अकड़ती नहीं?
( सुनीता करोथवाल )
દીકરાઓ હંમેશા ઊભા રહ્યા
ઊભા રહેવું એમની કોઈ મજબૂરી નથી
બસ એમને કહેવામાં આવ્યું.. હંમેશા
ચાલો તમે તો છોકરાઓ છો ઊભા રહી જાવ
તમે જડસુઓનું કંઈ બગડી જવાનું નથી
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નાનીનાની વાતોમાં એ વર્ગની બહાર ઊભા રહ્યા
શાળા વિદાય સમારંભનો જ્યારે ફોટો લેવામાં આવ્યો
છોકરીઓ હંમેશા આગળ બેઠી
અને છોકરાઓ અદબ વાળીને પાછળ ઊભા રહ્યા
તેઓ ફોટોમાં આજ સુધી ઊભા રહ્યા
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કોલેજની બહાર ઊભા રહીને
જોતા રહ્યા કોઈ છોકરીની રાહ
અથવા કોઈ ઘરની સામે કલાકો ઊભા રહ્યા
એક ઝલક, એક હા માટે
તેઓની અડધી જાત આજેય ત્યાં જ રહી ગઈ છે.
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બહેન-દીકરીનાં લગ્નમાં ઊભા રહ્યા મંડપની બહાર
જાનનું સ્વાગત કરવા માટે
ઊભા રહ્યા આખી રાત કંદોઈ પાસે
ક્યારેય કોઈ શાક ઓછું ન પડે
ઊભા રહ્યા ખાવાનાં મેજ પાસે
ક્યાંક કોઈ વ્યંજન ખતમ ન થઈ જાય
ઊભા રહ્યા વિદાય સુધી દરવાજાના ટેકે
અને મંડપનો છેલ્લો સ્તંભ સંકેલી લેવામાં આવે ત્યાં સુધી
બહેન-દીકરીઓ જ્યારે પગફેરે આવશે
તેઓ ત્યાં ઊભેલા જ હશે.
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તેઓ ઊભા રહ્યા પત્નિને સીટ પર બેસાડીને
બસ કે ટ્રેનની બારી પકડીને
તેઓ ઊભા રહ્યા બહેનની સાથે ઘરનાં કામમાં કોઈ વજનદાર વસ્તુ ઊંચકીને
તેઓ ઊભા રહ્યા માના ઓપરેશનના સમયે
ઓ. ટી.ની બહાર કલાકો
તેઓ ઊભા રહ્યા પિતાનાં મૃત્યુ વખતે છેલ્લું લાકડું બળી જાય ત્યાં સુધી
તેઓ ઊભા રહ્યા ડિસેમ્બરમાં પણ
ગંગાનાં બરફીલા પાણીમાં અસ્થિઓ વહાવતા
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દીકરાઓ,
બરડો તો તમારી પીઠમાંય છે
શું એ ઝકડાઈ જતો નથી ?
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( સુનીતા કરોથવાલ, અનુ. નેહા પુરોહિત )
रामलला-मनमीत सोनी
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राम : कुछ शब्द-चित्र : भाग पांच-मनमीत सोनी
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राम : कुछ शब्द-चित्र : भाग चार-मनमीत सोनी
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राम : कुछ शब्द-चित्र : भाग तीन-मनमीत सोनी
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राम : कुछ शब्द-चित्र : भाग दो-मनमीत सोनी
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( मनमीत सोनी )
राम : कुछ शब्द-चित्र : भाग एक-मनमीत सोनी
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वे पुरानी औरतें-सुनीता करोथवाल
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जाने कहाँ मर-खप गई वे पुरानी औरतें
जो छुपाए रखती थी नवजात को सवा महीने तक
घर की चार दीवारी में।
नहीं पड़ने देती थी परछाई किसी की
रखती थी नून राई बांध कर जच्चा के सिरहाने
बेल से बींधती थी चारपाई
रखती थी सिरहाने पानी का लोटा,
सेर अनाज
दरवाजे पर सुलगाती थी हारी दिन-रात।
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कोई मिलने भी आता तो झड़कवाती थी आग पर कपड़े
और बैठाती थी थोड़ा दूर जच्चा-बच्चा से
फूकती थी राई, आजवाइन, गुगल सांझ होते ही
नहीं निकलती देती थी घर से गैर बखत किसी को।
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घिसती थी जायफल हरड़ बच्चे के पेट की तासीर माप कर
पिलाती थी घुट्टी
और जच्चा को देती थी घी आजवाइन में गूंथ कर रोटियाँ।
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छ दिन तक रखती थी दादा की धोती में लपेटकर बच्चे को
फिर छठी मनाती थी
बनाती थी काजल कचळौटी में
बांधती थी गले में राईलाल धागे से
पहनाती थी कौड़ी पैर में
पगथलियों पर काला टीका लगा
लटकाती थी गले में चाँद सूरज
बाहर की हर अला-बला से बचाती थी
कहती थी कच्ची लहू की बूंद है अभी ये
ओट में लुगड़ी की दूध पिलाती थी।
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घर से बाहर निकल कर देखो पुरानी औरतो
प्रदर्शनी लगी है दूध मुंहे बच्चों की सोशल मीडिया पर।
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कोई नजर का टीका
कोई नज़रिया बचा हो तो बाँध दो इन्हें
वरना झूल रहे हैं ये बाज़ार की गोद मे
लोगों के सैकड़ों कमेंट्स और लाइक्स के चक्कर में ।
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( सुनीता करोथवाल )
इमरोज़ वो शख्स-ज़ीशान खान
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