अब आऐ या न आऐ ईधर पूछते चलो
क्या चाहती है उन की नजर पूछते चलो
.
हम से अगर है तर्क-ए-तअल्लुक तो क्या हुआ
यारो, कोई तो उनकी खबर पूछते चलो
.
जो खुद को कह रहे हैं कि मंजिल शनास हैं,
उनको भी क्या खबर है मगर पूछते चलो
.
किस मंजिल-ए-मुराद की जानिब रवा हैं हम
ऐ रह-रवान-ए-खाक-ए-बसर पूछते चलो
.
( साहिर लुधियानवी )
[ तर्क-ए-तअल्लुक = सम्ब न्ध टूटे हुए, शनास = जानने वाले, रवा = चलना, रह-रवान-ए-खाक-ए-बसर = रास्ते में पडे हुए ]
तर्क-ए-तअल्लुक और आपसे? कभी मुमकिन ही नहीं तो इस बार में नहीं सोचते…ठीक है?
वैसे साहिर जी ने काफी खूब फरमाया है…की…
हम से अगर है तर्क-ए-तअल्लुक तो क्या हुआ
यारों, कोई तो उनकी खबर पूछते चलो…
तर्क-ए-तअल्लुक और आपसे? कभी मुमकिन ही नहीं तो इस बार में नहीं सोचते…ठीक है?
वैसे साहिर जी ने काफी खूब फरमाया है…की…
हम से अगर है तर्क-ए-तअल्लुक तो क्या हुआ
यारों, कोई तो उनकी खबर पूछते चलो…