जानता हूँ प्यार – हरिवंशराय बच्चन

बाँह तुमने डाल दी ज्यों फूल माला

संग में, पर, नाग का भी पाश डाला,

जानता गलहार हूँ, जंजीर को भी;

जानता हूँ प्यार, उसकी पीर को भी.

 .

है अधर से कुछ नहीं कोमल कहीं पर,

किन्तु इनकी कोर से घायल जगत भर,

जानता हूँ पंखुरी, शमशीर को भी;

जानता हूँ प्यार, उसकी पीर को भी.

 .

कौन आया है सुरा का स्वाद लेने,

जोकि आया है हृदय का रक्त देने,

जानता मधुरस, गरल के तीर को भी;

जानता हूँ प्यार, उसकी पीर को भी.

 .

तीर पर जो उठ लहर मोती उगलती,

बीच में वह फाडकर जबडे निगलती

जानता हूँ तट, उदधि गंभीर को भी;

जानता हूँ प्यार, उसकी पीर को भी

 .

( हरिवंशराय बच्चन )

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