इमरोज़ ने नहीं छोड़ा-दीपाली अग्रवाल

 

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इमरोज़ का नाम आते ही अमृता प्रीतम याद आ जाती हैं, चूंकि वे उनकी मशहूर प्रेम कहानियों का एक बड़ा हिस्सा थे। उनके जीवन के महत्वपूर्ण किरदार जिसने अपने सारे वजूद को अमृता की छांव बना लिया। उनकी मृत्यु हो गई है, इमरोज़ की मृत्यु हो गई है अमृता के जाने के लगभग 18 साल बाद। उनके क़रीबी बताते हैं कि वे अक्सर ही अमृता को याद करते रहते और कहते कि वो यहीं-कहीं मौजूद है। इमरोज़ से लोग इस प्रेम कहानी के आकर्षण में मिलना भी चाहते थे। उन्हें फ़ोन लगाते और अमृता के बारे में पूछते, पहले तो वे कई कार्यक्रमों में नज़र भी आए फिर जाना बंद कर दिया, उम्र का असर रहा होगा शायद।
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लेकिन इमरोज़ एक मशहूर पेंटर भी थे, उन्होंने कई किताबों के आवरण तैयार किए, अपनी उम्र के आख़िरी पड़ाव तक भी उनकी कूची किताबों के लिए रंग भर रही थी। 26 जनवरी, 1926 को पंजाब में पैदा हुए इंद्रजीत 1966 में लगभग 40 की उम्र में अमृता से मिले थे। अमृता से एक कलाकार के तौर पर जुड़े और वहीं से नाम बदल कर किया इमरोज़। उनकी औऱ अमृता का दोस्ती गहराती गई। अमृता अपने पति प्रीतम से अलग हो चुकी थीं और 2 बच्चों की मां थीं, वह साहिर के प्रेम में थीं और इमरोज़ अमृता के। अमृता और इमरोज़ के शारीरिक संबंध न थे जबकि वह एक छत्त के नीचे रहते थे, लोग इसे प्लेटोनिक लव मानते हैं। अमृता रात में लिखती रहतीं और इमरोज़ चाय का कप रख जाते।
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एक बार गुरुदत्त ने इमरोज़ की पेंटिंग से प्रभावित होकर उन्हें बंबई बुलाया, अमृता ने उन्हें जाने भी दिया, वो बंबई भी पहुंच भी गए कि अमृता ने तार भेजा कि बुखार में हैं और इमरोज़ वहां से वापस दिल्ली आ गए। अमृता प्रीतम राज्यसभा गईं तो वो उन्हें छोडने जाते कि लोग उन्हें ड्राइवर समझ बैठे थे। इमरोज़ ने अपने अस्तित्व को अमृता में मिला दिया था। उनका प्रेम बिना किसी आकांक्षा और इच्छा के था। वह उनकी साथ चाहते थे। इमरोज़ ने उनके लिए कविताएं भी लिखीं, उनके जाने के बाद भी, वे अमृता को ही याद करते रहते और मानते कि वह कभी मरी ही नहीं हैं। सच है कि प्रेम मरता ही कहां है, वह तो भीतर ही मौजूद रहता है। अमृता ने भी इमरोज़ के लिए लिखा था कि मैं तैनूं फिर मिलांगी औऱ ये नज़्म ख़ूब लिखी-पढ़ी और सुनी गई।
अमृता की वो किताब जो उनके और साहिर के क़िस्से कहती है रसीदी टिकट, उसका आवरण इमरोज़ ने तैयार किया था। इमरोज़ जैसा प्रेम वाकई विरले ही कर पाते हैं, ख़ुद को खोकर किसी के जीवन की चमक बनना आसान कहां है। इमरोज़ से एक दफ़ा अमृता ने कहा था कि वो पूरी धरती का चक्कर लगा ले और लगे कि अब भी अमृता के साथ ही रहना है तो वह इंतज़ार करती मिलेंगी। इमरोज़ ने अमृता का चक्कर लगाकर कहा कि हो गया पूरी धरती की चक्कर और वह उनके साथ ही रहेंगे।
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इमरोज़ ने वो साथ अभी तक नहीं छोड़ा था, वह अपनी स्मृतियों और अपने होने भर से ही उऩकी मौजूदगी का एहसास करवाते थे। अब अमृता का धरती पर स्मरण करवाने के लिए वो देह नहीं बची। मुहब्बत में ज़िंदगी में ऐसे भी जी जाती है क्या भला।
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( दीपाली अग्रवाल )
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