
इमरोज़ हो नहीं सकते
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मेरे दिल में व्यक्ति इमरोज़ के लिए बहुत इज़्ज़त है। हमेशा रहेगी। इसलिए नहीं कि वह अमृता प्रीतम को अमाप प्रेम करते थे, जो कइयों के लिए आला लेखिका हैं। बल्कि इसलिए कि वह अमृता-साहिर वग़ैरह से ज़्यादा बड़े प्रेमी और मनुष्य थे। कहीं ज़्यादा बड़ा कवि-जीवन उन्होंने जिया, बड़ी कविता संभव किए बग़ैर।
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ऐसा बहुत कम लोग कर पाते हैं। कविता जैसा जीवन जीना। अपना प्रेम चुनना। उसे हर हाल जीना। दुनिया की न परवाह करने का दम भरनेवाले आज के ज़माने से बहुत पहले दुनिया को नाकुछ साबित करके गरिमा से सर्वप्रिय बन जाना आसान नहीं।
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इमरोज़ हमारे संसार का सुख थे। हममें से न जाने कितने हैं, जो अपने लिए एक इमरोज़ चाहते हैं। इमरोज़ होना चाहते हैं। हो नहीं सकते! उन जैसा अन्तःकरण असंभव है।
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( प्रतिक्षा गुप्ता )